कुशीनगर


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कुशीनगर भारत के उत्तर प्रदेश में एक प्रसिद्ध बौद्ध तीर्थ स्थल है। यहाँ गौतम बुद्ध की मृत्यु और अंतिम संस्कार हुआ था। बौद्ध धर्म में बुद्ध लोगों के शरीर छोड़ने को परिनिर्वाण कहते हैं। यह छोटा किन्तु सुन्दर नगर बौद्ध मंदिरों और स्तूप के लिये जाना जाता है। इसके अलावा यहाँ ध्यान करने के लिए मंदिर और यहाँ की प्राचीन वस्तुओं को संरक्षित करने के लिए संग्रहालय भी है।

बौद्ध ग्रंथों के मुताबिक़ महात्मा बुद्ध की मृत्यु ककुत्था नदी को पार करने के बाद कुछ दूर जाने के उपरांत कुशीनगर नामक एक वन क्षेत्र मे हुई थी। बाद में उनके निधन और महापरिनिर्वाण स्थल पर स्तूपों का निर्माण करवाया गया और बौद्ध धर्म के मानने वालों के लिए यह एक तीर्थ बन गया। कुछ अन्य लोग इस स्थान को कोशल के राजाओं की बसाई नगरी कुशवती के रूप में भी पहचानते हैं, जिसके बारे में माना जाता है कि यह राम के बेटे कुश द्वारा स्थापित की गयी थी।

वर्तमान समय में विद्वान् इसे ही उस स्थान के रूप में पहचानते हैं जहाँ गौतम बुद्ध की मृत्यु हुई थी, और उनका अंतिम संस्कार किया गया। सम्राट अशोक ने यहाँ स्तूप का निर्माण करवाया और बाद में गुप्त राजाओं ने इसे विस्तृत करवाया। गौतम बुद्ध की लेटी हुई मुद्रा में मूर्ति भी गुप्तकाल की मानी जाती है। बाद में बारहवी सदी में मुस्लिम शासन काल में यह स्थान उपेक्षा का शिकार हुआ और इतिहास की गर्त में खो गया था। अंग्रेजों के समय में जब यहाँ पुराने दब चुके स्तूपों और मंदिर तथा विहार अवशेषों की खोज हुई, इसे दुबारा महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ।

इस स्थान की खोज का श्रेय जनरल कनिंघम और उनके सहयोगी कार्लाइल को जाता है।

यहाँ स्थान बौद्ध धर्म मानने वाले लोगों लिए मत्वपूर्ण है क्योंकि यहाँ गौतम बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ था। इसी की स्मृति में यहाँ स्तूप और बौद्ध मंदिरों का निर्माण हुआ है। इसके अलावा यहाँ के बौद्ध मंदिरों और स्तूपों की सुन्दरता सभी को आकर्षित करती है।

यह एक छोटा सा कस्बा है जो उत्तर प्रदेश के उत्तरी-पूर्वी छोर पर मौजूद है। इसी नाम के जिले का मुख्यालय यहाँ से कुछ दूर उत्तर में पड़रौना के समीप रवीन्द्रनगर नामक स्थान पर विकसित किया जा रहा है।

वायुमार्ग से कुशीनगर सीधे नहीं पहुँचा जा सकता हालाँकि, यहाँ एक अंतरर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा निर्माणाधीन है। वर्तमान में निकटतम हवाईअड्डा गोरखपुर में है जहाँ से यहाँ सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है। गोरखपुर हवाई अड्डा भी मुख्यतः सेना के द्वारा संचालित है और यहाँ नागरिक हवाई जहाज बहुत कम उतरते हैं। चूँकि गोरखपुर हवाईअड्डे पर बहुत कम विमान उतरते हैं, अन्य विकल्प यह हैं कि वायुमार्ग से लखनऊ अथवा वाराणसी पहुँचा जाय और यहाँ से रेल अथवा सड़क मार्ग से कुशीनगर तक पहुँचें। वाराणसी और लखनऊ दोनों हवाई अड्डे पूरे देश के लगभग सभी बड़े शहरों से विमान सेवाओं द्वारा जुड़े हैं। अतः यदि आप हवाई मार्ग से कुशीनगर आना चाहते तो लखनऊ या वाराणसी आयें और यहाँ से अपनी सुविधानुसार टैक्सी इत्यादि द्वारा कुशीनगर पहुँचें।

पड़रौना, सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन है जो गोरखपुर-थावे रेलमार्ग पर स्थित है और इस जिले का मुख्यालय भी यहीं हैं। पड़रौना कुशीनगर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है। देवरिया और गोरखपुर यहाँ से अन्य नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं।

अन्य विकल्प रेल द्वारा देवरिया पहुँचना और वहाँ से सड़क मार्ग से कुशीनगर पहुँचना है। देवरिया, वाराणसी-गोरखपुर रेलमार्ग पर स्थित स्टेशन है और इस लाइन पर रेलों की संख्या अधिक है। देवरिया से कुशीनगर पहुँचने के लिए बसें और टैक्सियाँ आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं।

गोरखपुर और देवरिया और पड़रौना से यहाँ सड़क मार्ग द्वारा पहुँचा जा सकता है। ये तीनों शहर रेल स्टेशन से युक्त हैं। गोरखपुर इस इलाके का सबसे बड़ा शहर है और रेल एवं सड़क मार्गों द्वारा पूरे भारत से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। गोरखपुर से नियमित बसें कुशीनगर के लिए जाती हैं और यात्रा में लगभग डेढ़-दो घंटे का समय लगता है।

वाराणसी से कुछ बसें सीधे कुशीनगर (पडरौना) के लिए जाती हैं पर ये दिन में एक या दो हैं और सुबह के समय वाराणसी से रवाना होती हैं।

निजी रूप से टैक्सी का विकल्प अच्छा है यदि आपके पास खर्च करने के लिए पर्याप्त पैसा है। बड़े शहरों, उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, अथवा वाराणसी से आप टैक्सी किराए पर लेकर यहाँ की यात्रा कर सकते हैं।

कुशीनगर में देखने लायक चीजों में प्राचीन स्तूप तथा विहारों के भग्नावशेष के अलावा कई आधुनिक बौद्ध मंदिर भी हैं। बौद्ध धर्म के लिए प्रमुख तीर्थस्थल होने के कारण पूर्व एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों द्वारा यहाँ मंदिरों का निर्माण कराया गया है क्योंकि इन देशों में बौद्ध धर्म को काफी महत्त्व दिया जाता है।

 
परिनिर्वाण स्तूप
 
विहारों के भग्नावशेष
  • महापरिनिर्वाण मंदिर - अथवा परिनिर्वाण स्तूप एक प्राचीन मंदिर है और यहाँ का सबसे प्रमुख मंदिर भी है। यह एक सफ़ेद रंग का स्तूप और मंदिर है। पीछे का गोल गुंबद वाला हिस्सा स्तूप के रूप में है। स्तूप के अंदर गौतम बुद्ध के अवशेष रखे माने जाते हैं और आगे के हिस्से की रचना मंदिरनुमा है। इस मंदिर में भगवान बुद्ध की लेटी हुई मुद्रा में एक बड़ी सी मूर्ति है। यहाँ मूर्ति के आसपास बैठ कर ध्यान अथवा मन्त्र जाप करते भिक्षु मिलेंगे, आप चाहें तो आप भी यहाँ बैठ कर ध्यान कर सकते हैं। किसी व्यक्ति को दान देना मना है। मंदिर से ठीक पहले प्राचीन काल के बौद्ध विहारों के भग्नावशेष हैं।
 
रामभर स्तूप, जहाँ बुद्ध का अंतिम संस्कार हुआ था
  • रामभर स्तूप - प्राचीन काल का स्तूप है, जिसे सम्राट अशोक द्वारा बनवाया माना जाता है। यह ईंटों का बना एक विशाल टीला है। इसके चारों ओर परिक्रमा पथ है और अगर आप इसके चारों ओर घूम कर देखना चाहते हैं तो बाएँ से शुरू करके दाहिने की ओर जाएँ अर्थात परिक्रमा में चलते समय स्तूप आपके दाहिने हाथ की ओर रहे। स्तूप पर चढ़ें नहीं, इसे धार्मिक रूप से बहुत पवित्र माना जाता है।
  • जापानी मंदिर - परिनिर्वाण स्तूप से थोड़ी दूर पर दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित यह मंदिर जापान के लोगों द्वारा बनवाया गया है। इसकी रचना में जापानी शैली की झलक दिखती है और यह आधुनिक समय में बने कुछ सबसे सुंदर मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में जापान में निर्मित भगवान बुद्ध की धातु की मूर्ति स्थापित है।
  • थाई मंदिर - वाट मंदिर, अथवा थाई मंदिर यहाँ के सबसे सुंदर आधुनिक मंदिरों में से एक है और यहाँ जाने पर अवश्य ही देखने लायक है। ख़ास तौर से इसकी थाई मंदिरों के वाट शैली के लिए जाना जाता है और इसके आसपास का वातावरण भी काफी सुंदर और शांत है। यहाँ से थोड़ी दूर पर ही ध्यान मंदिर और चीनी मंदिर भी है।
  • ध्यान मंदिर - प्रचलित नाम मेडिटेशन टेम्पल है। यह थाई वाट मंदिर से कुछ ही दूरी पर है।

अन्य मंदिरों में चीन, श्रीलंका और कई अन्य देशों के मंदिर हैं। एक छोटा किन्तु बहुत सुन्दर मंदिर कृत्रिम तालाब के बीचोबीच भी बना हुआ है और मंदिर तक जाने के लिए पुल से होकर जाना पड़ता है।

कुशीनगर में एक संग्रहालय भी स्थापित किया गया है जिसे राजकीय बौद्ध संग्रहालय अथवा प्रचलित रूप से केवल बुद्ध संग्रहालय के नाम से जाना जाता है। कुशीनगर में मंदिरों के अलावा इतिहास में रूचि रखने वालों के लिए यह संग्रहालय महत्त्व की चीज है। इस संग्रहालय में पुरातात्विक खुदाइयों में प्राप्त हुई चीजें रखी हुई हैं। पुरातत्ववेत्ता जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम के सहायक ए॰सी॰एल॰ कार्लाइल ने सन् 1876 में कुशीनगर में पुरातात्विक खुदाई प्रारंभ कराई और1904 में डा. वोगेल तथा 1906 से 1912 तक हीरानंद शास्त्री द्वारा यहाँ खुदाई कराई गई थी जिसमें बुद्ध की निर्वाण प्रतिमा के अतिरिक्त अन्य प्रतिमाएं, ताम्रघट, मोहरें, चांदी, तांबे के सिक्के, मोती, पन्ना, मिट्टी व धातु के हथियार व अन्य अनेक पुरातात्विक सामग्री प्राप्त हुई थी। इनमें से ज्यादातर चीजें नेशनल म्यूजियम नई दिल्ली, इण्डियन म्यूजियम कोलकाता तथा स्टेट म्यूजियम कोलकाता में संग्रहीत है। बुद्ध संग्रहालय 1993 में प्रारंभ किया गया था और इसमें चार वीथिकायें हैं कुशीनगर और आसपास के जिलों से संग्रहीत लगभग 15 सौ कलाकृतियाँ व पुरावशेष प्रदर्शित हैं। यहाँ आप गुप्तकाल की बनी मूर्तियाँ और अन्य कई चीजें देख सकते हैं जिससे आपको उस समय की कला और कुशीनगर के इतिहास के बारे में काफी जानकारी मिलेगी। यह संग्रहालय इंडो-जापान-श्रीलंकन बौद्ध केन्द्र के निकट स्थित है। यह संग्रहालय सोमवार के अलावा प्रतिदिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।

यहाँ रुकने के लिए दो तरह के विकल्प हैं। यहाँ मौजूद मंदिरों में भी तीर्थयात्रियों के रुकने की व्यवस्था है जहाँ आप दान के रूप में भुगतान करके रुक सकते हैं। इसके अलावा यहाँ उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा विकसित रुकने का स्थान भी है।

निजी होटलों में भी रुका जा सकता है जो कुशीनगर के केंद्र से दो किलोमीटर के दायरे में कई सारे हैं।

  • तिब्बती मठ - यहाँ आप दान के रूप में भी भुगतान कर सकते हैं और कमरे के किराए के रूप में भी।
  • जापानी - श्रीलंकाई मठ - मूल रूप से जापानियों द्वारा बनवाया गया और श्रीलंका को प्रबंधन हेतु सौंपा गया मंदिर है। मंदिर सुबह सात बजे से शाम पाँच बजे तक खुला रहता है और इस दौरान आप यहाँ जाकर पता कर सकते हैं कि यहाँ के गेस्टहाउस में कोई कमरा खाली है या नहीं। भुगतान के रूप में आपको कुछ रकम दान करनी होगी। * बर्मीज टेम्पल कुशीनगर में सैकडों कमरों का गेस्ट रूम है जिसे भिक्षु ज्ञानेश्वर जी से समपर्क कर कमरा लिया जा सकता है। * बिरला मन्दिर कुशीनगर में दर्जनो कमरे है जिसमें कम किराया देकर रहा जा सकता है।
  • राही पथिक निवास - उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग द्वारा स्थापित संचालित होटल और रेस्तरां है। यहाँ के कमरे पर्याप्त बड़े हैं जैसा कि सरकारी होटलों में होता है। इसे दो सितारे प्राप्त हैं। फोन: 05564 273 045
  • लोटस निक्को होटल - यह एक साफसुथरा और बढ़िया से प्रबंधन वाला होटल है। कमरे का किराया लगभग 4000 रु॰ है।
  • दि इम्पीरियल - होटल को विभिन्न यात्रा वेबसाइटों पर अच्छी रेटिंग है।

यहाँ का स्थानीय खाना परम्परागत उत्तर भारतीय खाना है जिसमें चावल, दाल, रोटी, सब्जियाँ और मछली शामिल है। नाश्ते में पकौड़ियाँ और जलेबी इस क्षेत्र का सुबह का प्रचलित नाश्ता है। चाट और छोले-समोसे आपको काफी जगहों पर मिल जायेंगे।

  • पथिक निवास रेस्तराँ - उत्तर प्रदेश के पर्यटन विभाग द्वारा संचालित होटल का रेस्तराँ है, यहाँ भोजन और नाश्ते की अच्छी व्यवस्था है और यहाँ खाने के लिए रुकना जरूरी नहीं, आप केवल भोजन करने के लिए भी जा सकते हैं। चूँकि कुशीनगर में बाहरी देशों से भी काफी तीर्थयात्री आते हैं, यहाँ आप कुछ विदेशी व्यंजनों का भी लुत्फ़ उठा सकते हैं।

उपरोक्त के अलावा यहाँ सड़क के किनारे कई ढाबे हैं जहाँ आप सस्ते में उत्तर भारतीय खाना खा सकते हैं।

यह एक धार्मिक स्थल है और भगवान बुद्ध के स्मारक के रूप में यहाँ मंदिर और स्तूप हैं, अतः आपसे उमीद की जाती है कि आप यहाँ के शांत और पवित्र वातावरण में कोई उत्पात न मचाएँ। आपको नीचे लिखी कुछ बातों का ध्यान रखना होगा:

  • प्रयास करें कि यहाँ के माहौल के अनुसार कपड़े पहनें, हलके रंग के और शरीर को ज्यादा ढंकने वाले।
  • वातावरण की शांति भंग न करें, ख़ास तौर से ध्यान मंदिरों में बात न करें।
  • मूर्ति अथवा स्तूपों की परिक्रमा करते समय घड़ी की सुई की दिशा में घूमें, यानि आपके चलते समय वह स्तूप या मूर्ति आपके दाहिने ओर रहनी चाहिये।
  • किसी स्तूप या मूर्ति पर न चढ़ें, जूते चप्पल पहन कर मंदिरों में न घुसें, मूर्तियों के सिर अथवा ऊपरी हिस्से को न छुयें।

कुशीनगर जिले में अन्य कई मंदिर और धार्मिक स्थल हैं, जहाँ आप यात्रा कर सकते हैं। ये सभी स्थान कुशीनगर के आसपास 50 किलोमीटर से कम दूरी के दायरे में हैं हालाँकि, यहाँ जाने के लिए आपको टैक्सी रिजर्व करानी होगी और शाम से पहले कुशीनगर वापस आना होगा। इन स्थानों पर रुकने की कोई व्यवस्था नहीं मिलेगी।

  • फाजिलनगर - एक छोटा सा कस्बा है, जहाँ से कुछ दूर पर मिट्टी का स्तूप मौजूद है। माना जाता है कि यह उस स्थान पर निर्मित है जहाँ गौतम बुद्ध ने अपना अंतिम भोजन किया था।
  • सूर्य मंदिर - तुर्कपट्टी महेवाँ नामक स्थान पर एक छोटा सा मंदिर है। इसमें स्थापित मूर्ति गुप्तकाल की है और खास नीले पत्थर की है जिसे नीलमणि शैल कहा जाता है। मूर्ति में मुख्य रूप से सूर्य को दिखाया गया है और उनके चारों ओर अन्य ग्रहों को छोटे रूप में उत्कीर्ण किया गया है।
  • सिधुआ स्थान - यह स्थान भी कुशीनगर जिले में ही है, यह नाथ सम्प्रदाय के सिद्धों की तपोभूमि रहा है और यहाँ समाधियाँ हैं। हाल में यहाँ सुंदर मंदिर का निर्माण करवाया गया है।
  • थावे - पडरौना सीवान रेल मार्ग का आखरी स्टेशन है, यह हिन्दू धर्म के मानने वालों के लिए आकर्षण स्थल है और यहाँ देवी का मंदिर है।

कुशीनगर की यात्रा के बाद आप वापस गोरखपुर होते हुए उत्तर की ओर नेपाल के लिए जा सकते हैं, अथवा दक्षिण में सारनाथ (वाराणसी) के लिए जा सकते हैं।

सारनाथ

सारनाथ उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित वाराणसी (बनारस) के पास एक उपनगर है। यह बनारस से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर उत्तर-उत्तर पूर्व दिशा में है। यह स्थान बौद्ध और जैन धर्म के तीर्थ यात्रियों के लिए महत्वपूर्ण है। गौतम बुद्ध ने अपना पहला धर्मोपदेश यही दिया था। इस उपदेश को धर्मचक्रप्रवर्तन कहा जाता है, इसके बाद संघ की स्थापना यहीं हुयी थी और इसीलिए यह बौद्ध धर्म के चार सबसे प्रमुख तीर्थों में से एक है। यह एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी है। यदि आप यहाँ से होते हुए कुशीनगर नहीं आये हैं तो कुशीनगर की यात्रा के उपरान्त यहाँ जाना सबसे बेहतर विकल्प है।